आँखें खुली नहीं थी अब तक
तीन अंगुल बराबर सी थी
नन्हे से हाथ और
नन्ही सी उन पर अंगुलियां
नन्ही सी थी, मेरी बच्ची
निकट वाले कक्ष में
अब भी मेरी अपनी, उलझी थी ज़िन्दगी मौत की कश्मकश में
इस नन्ही को फिर एक बार देखा
कहीं दूर थी ये तो
ज़िन्दगी की जद्दोजेहद से
निकट कक्ष में, समीप मेरी अपनी के
दिन रात में और रात दिन में विलीन थे
चैन की एक सांस थामने को अरसा हुआ था
दिन ऐसा ही कोई, परिचारिका ले गयी
वहां जहाँ एक नहीं, दो नहीं, कहीं से नवजात, नन्हे थे
फिर थाम, मेरी नन्ही को
अपनी नज़र में भर कर
कुछ ठहर कर, ज़िन्दगी को भूल कर
उसे निहारा, फिर सराहा, मैंने शायद पहली बार
होले से मेरी अनामिका को उसने भर लिया मुठी में अपनी
मेरा ही अक्स, मेरी ही परछाई
मैंने प् लिया, जैसे मेरे जहाँ को
पलख उसने भी उठाई मेरी और
समझ न पाया मैं, की क्या वो मुस्कुराई
जान मेरी, मेरे जिस्म से उसमे पिरो गयी
अद्भुत, दिव्य है
कोमल सी है
मेरी नन्ही परी
मेरा ही अंश
मेरी बच्ची !
सौरभ।
तीन अंगुल बराबर सी थी
नन्हे से हाथ और
नन्ही सी उन पर अंगुलियां
नन्ही सी थी, मेरी बच्ची
निकट वाले कक्ष में
अब भी मेरी अपनी, उलझी थी ज़िन्दगी मौत की कश्मकश में
इस नन्ही को फिर एक बार देखा
कहीं दूर थी ये तो
ज़िन्दगी की जद्दोजेहद से
निकट कक्ष में, समीप मेरी अपनी के
दिन रात में और रात दिन में विलीन थे
चैन की एक सांस थामने को अरसा हुआ था
दिन ऐसा ही कोई, परिचारिका ले गयी
वहां जहाँ एक नहीं, दो नहीं, कहीं से नवजात, नन्हे थे
फिर थाम, मेरी नन्ही को
अपनी नज़र में भर कर
कुछ ठहर कर, ज़िन्दगी को भूल कर
उसे निहारा, फिर सराहा, मैंने शायद पहली बार
होले से मेरी अनामिका को उसने भर लिया मुठी में अपनी
मेरा ही अक्स, मेरी ही परछाई
मैंने प् लिया, जैसे मेरे जहाँ को
पलख उसने भी उठाई मेरी और
समझ न पाया मैं, की क्या वो मुस्कुराई
जान मेरी, मेरे जिस्म से उसमे पिरो गयी
अद्भुत, दिव्य है
कोमल सी है
मेरी नन्ही परी
मेरा ही अंश
मेरी बच्ची !
सौरभ।